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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


मनोवृत्ति मुंशी प्रेम चंद
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दो वृद्ध पुरुष धीरें-धीरें ज़मीन की ओर ताकते आ रहे हैं। मानो खोई जवानी ढूँढ रहे हों। एक की कमर झुकी, बाल काले, शरीर स्थूल, दूसरे के बाल पके हुए, पर कमर सीधी, इकहरा शरीर। दोनों के दाँत टूटे, पर नक़ली लगाए, दोनों की आँखों पर ऐनक। मोटे महाशय वक़ील है, छरहरे महोदय डॉक्टर।
वक़ील- देखा, यह बीसवीं सदी का करामात।
डॉक्टर- जी हाँ देखा, हिन्दुस्तान दुनिया से अलग तो नहीं हैं?
'लेकिन आप इसे शिष्टता तो नहीं कह सकते?'
'शिष्टता की दुहाई देने का अब समय नहीं।'
'हैं किसी भले घर की लड़की।'
'वेश्या हैं साहब, आप इतना भी नहीं समझते।'
'वेश्या इतनी फूहड़ नहीं होती।'
'और भले घर की लड़की फूहड़ होती हैं।'
'नयी आज़ादी हैं, नया नशा हैं।'
'हम लोगों की तो बुरी-भली कट गयी। जिनके सिर आयेगी, वह झेलेंगे।'
'ज़िन्दगी जहन्नुम से बदतर हो जायेगी।'
'अफ़सोस! जवानी रुखसत हो गयी।'
'मगर आँखें तो नहीं रुख़सत हो गई, वह दिल तो नहीं रुख़सत हो गया।'
'बस, आँखों से देखा करो, दिल जलाया करो।'
'मेरा तो फिर से जवान होने को जी चाहता हैं। सच पूछो, तो आजकल के जीवन में ही जिन्दगी की बहार हैं। हमारे वक़्तों में तो कहीं कोई सूरत ही नज़र नहीं आती थी। आज तो जिधर जोओ, हुस्न ही हुस्न के जलवे हैं।'
'सुना, युवतियों को दुनिया में जिस चीज़ से सबसे ज्यादा नफ़रत हैं, वह बूढ़े मर्द हैं।'
'मैं इसका कायल नहीं। पुरुष को ज़ौहर उसकी जवानी नहीं, उसका शक्ति-सम्पन्न होना हैं। कितने ही बूढ़े जवानों से ज्यादा से ज्यादा कड़ियल होते हैं। मुझे तो आये दिन इसके तज़ुरबे होते हैं। मै ही अपने को किसी जवान से कम नहीं समझता।'
'यह सब सहीं हैं, पर बूढ़ों का दिल कमज़ोर हो जाता हैं। अगर यह बात न होती, तो इस रमणी को इस तरह देखकर हम लोग यों न चले जाते। मैं तो आँखों भर देख भी न सका। डर लग रहा था कि कहीं उसकी आँखें खुल जायें और वह मुझे ताकते देख लें, तो दिल में क्या समझे।'
'खुश होती कि बूढ़े पर भी उसका जादू चल गया।'
'अजी रहने भी दो।'
'आप कुछ दिनों 'आकोसा' को सेवन कीजिए।'
'चन्द्रोदय खाकर देख चुका। सब लूटने की बातें हैं।'
'मंकी ग्लैंड लगवा लीजिए न?'
'आप इस युवती से मेरी बात पक्की करा दें। मैं तैयार हूँ।'
'हाँ, यह मेरा जिम्मा, मगर हमारा भाई हिस्सा भी रहेगा।'
'अर्थात्?'
'अर्थात्, यह कि कभी-कभी मैं भी आपके घर आकर अपनी आँखें ठंड़ी कर लिया करुँगा।'
'अगर आप इस इरादे से आये, तो मै आपका दुश्मन हो जाऊँगा।'
'ओ हो, आप तो मंकी ग्लैंड का नाम सुनते ही जवान हो गये।'
'मैं तो समझता हूँ, यह भी डॉक्टरों नें लूटने का एक लटका निकाला हैं। सच।'
'अरे साहब, इस रमणी के स्पर्श में जवानी हैं, आप हैं किस फेर में। उसके एक-एक अंग में, एक-एक मुस्कान में, एक-एक विलास में जवानी भरी हुई। न सौ मंकी ग्लैंड़, न एक रमणी का बाहुपाश।'
'अच्छा कदम बढाइए, मुवक्किल आकर बैठे होगे।'
'यह सूरत याद रहेगी।'
'फिर आपने याद दिला दी।'
'वह इस तरह सोयी है, इसलिए कि लोग उसके रूप को, उसके अंग-विन्यास को, उसके बिखरे हुए केशों को, उसकी खुली हुई गर्दन को देखे और अपनी छाती पीटें। इस तरह चले जाना, उसके साथ अन्याय हैं। वह बुला रही हैं और आप भागे जा रहे हैं।'
'हम जिस तरह दिल से प्रेम कर सकते हैं, जवान कभी कर सकता हैं?'
'बिल्कुल ठीक। मुझे तो ऐसी औरतों से साबिका पड़ चुका हैं, जो रसिक बूढों को खोजा करती हैं। जवान तो छिछोरे, उच्छृंखल, अस्थिर और गर्वीले होते हैं। वे प्रेम के बदले कुछ चाहते हैं। यहाँ निःस्वार्थ भाव से आत्म-समर्पण करते हैं।'
'आपकी बातों से दिल में गुदगुदी हो गयी।'
'मगर एक बात याद रखिए, कहीं उसका कोई जवान प्रेमी मिल गया, तो?'
'तो मिला करे, यहाँ ऐसों से नहीं डरते।'
'आपकी शादी की कुछ बातचीत थी तो?'
'हाँ, थी, मगर जब अपने लड़के दुश्मनी पर कमर बाँधे, तो क्या हो? मेरा लड़का यशवंत तो बन्दूक दिखाने लगा। यह जमाने की खूबी हैं!'
अक्तूबर की धूप तेज हो चली थी। दोनो मित्र निकल गये।

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